मोदी की साइकिल, मामा की साइकिल और दिव्यांगों की साइकिल, एक से दोस्ती बढ़ रही है, तो दो पड़े-पड़े सड़ रही है !

झाबुआपोस्ट । साइकिल को लेकर आपकी जानकारी जो भी हो लेकिन हम आपको आज तीन तस्वीरें दिखाएगें । एक सुखद हैं और दो आपको सिस्टम के नाम सिर पिटने को मजबूर कर देगी ।

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चलिए पहले बात करते हैं सुखद तस्वीर की । आपको हाल ही में साइकिल के साथ वो तस्वीर याद होगी जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रूट नज़र आ रहे हैं । मार्क रूट ने पीएम मोदी को साइकिल भेंट की, ताकि प्रदुषण को कम करने के साथ-साथ सेहत को भी बनाया जा सके । नीदरलैंड में साइकिल प्रमुख परिवहन का साधन हैं । नीदरलैंड की आबादी का 36 फीसदी हिस्सा ऑफिस आने जाने और दूसरे कामों के लिए साइकिल का उपयोग करता है ।

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तो साइकिल हुई ना अच्छी । चलिए ये बात तो हुई नीदरलैंड की । अब जरा अपनी धरती के झाबुआ जिले पर उतर आते हैं । अब साइकिल की दूसरी तस्वीर देखिए । प्रदेश के मुखिया और बच्चों के मामा ने अपने भांजे-भांजियों को गिफ्ट में दी साइकिल ताकि गांव बड़े स्कूल में आने-जाने वाले बच्चे साइकिल का उपयोग कर आ-जा सके । लेकिन प्रदेश सरकार की इस मंशा को जंग लग रही है झाबुआ में । झाबुआ में इन बच्चों को बांटे जानी वाली साइकिलें खुले में पड़ी सड़ रही हैं । और ये एक दो नहीं पूरी की पूरी 350 के ऊपर हैं ।  लापरवाही का आलम ये है कि इन साइकिलों के बीच में झाड़ियां और खरपतवार उग आई है लेकिन जिम्मेदार एक दूसरे को जिम्मेदार बताकर पल्ला झाड़ रहे हैं । जिला शिक्षा अधिकारी बाईओ को पत्र लिखने बात कह रहे हैं ।

लेकिन सवाल ये हैं कि इतनी ज्यादा मात्रा में ये साइकिलें यहां क्यों सड़ रही हैं । विभाग की सफाई है कि गलती से ज्यादा आकड़ा दर्ज हो गया है, इसलिए अतिरिक्त साइकिल आ गई , लेकिन ये भी तो हो सकता है कि जिन हाथों तक ये पहुंचनी हो वहां तक पहुंची ही ना हो । हमारे सूत्रों का तो ये भी कहना है कि पहले साइकिल नहीं दी जाती थी, साइकिल के बदले नगद राशि 2400 का भुगतान किया जाता था । साल 2016-17 के शैक्षणिक सत्र में फैसला लिया गया कि छात्रों को साइकिल शासन ही खरीद कर देगा । तो बाकी की कहानी आप खुद ही समझ जाईये । खुले में पड़ी जो साइकिलें सड़ रही हैं ये जिला शिक्षा विभाग को 9 से 12 वीं तक के छात्र-छात्राओं को बांटनी थी, आला अधिकारी बीईओ की गलती बता रहे हैं ।

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तीसरी तस्वीर भी साइकिल की है लेकिन ये दिव्यांगो की साइकिल है जिसे लंबे इंतजार के बाद केन्द्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत बांटने आए थे, कुछ को बांटी ,बाकी अब जिला विकलांग पुनर्वास केन्द्र की छत खुले में रखी बारिश का मजा ले रही है । बारिश से इनकी सेहत को कितना नुकसान होगा ये आप खुद समझ  लीजिए ।

दरअसल ये दो तस्वीरें लापरवाही को बयान करती हैं । अगर ये साइकिल अधिकारी-कर्मचारियों के अपने पैसों की होती तो इनकी फिक्र भी होती लेकिन क्योंकि ये जनता के टैक्स का पैसा तो सड़े या गले क्या फर्क पड़ता है, बांटी या ना बांटी कौन पूछने आ रहा है, अगली बार फिर नया कोटा आएगा फिर साइकिल आएंगी…और फिर…….बाकी तो जो है सो है ही….

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